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Saturday, February 11, 2017

यादों की कुछ गमगीन शामें




यहाँ है दवा की दुकान
सामने है मौत के फरमान
कुछ तो लोग जैसे
जनाजो के जश्न मानते है
तो कुछ शमशान को अपना घर बनाते है
जोखिम -ऐ - दस्तूर जिंदगी
तो क्या हुआ हम तो मौत को भी
सहोदर की तरह गले लगाते  हैं
हैवान - ऐ- जिल्लत तू  जिंदगी, तो क्या हुआ?
हम तो शोलों  से भी शबनम चुराते हैं


जारी कर दें यम आज की रात
फरमान आखिरी सांसो का
हम तो लहरो पे भी आशियाँ बनाते हैं
हर सांस गिन गिन  कर
तुम्हे ही समर्पित कर जाते हैं

है तन्हाई आज दुल्हन बनके बैठी मेरी
तो क्या हुआ?
हम झींगुरों से शहनियां बजवायेंगे
खामोशियों की बारात सजाकर  ले आएंगे
तन्हाई को आज हम हमसफ़र बनाएंगे


कुछ गुफ्तगू यु अधूरे  रह जायेंगे
हमने जगती रातों में सोचा न था
इंतज़ार हर भोर को किया हमनें जाने कितनी
शामों का



काली घनेरी चादर पे बिछ जाते  हैं तारे तमाम
याद आ जाती है कुछ अधूरे से  अरमान
हम हर अरमानों के तिनको से
अधूरी आरजुओं को जोड़ कर
एक घर बनाएंगे
घर का हर कोना
तुम्हारी ही यादों से सजायेंगे

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