poet shire

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Sunday, January 27, 2013

कहीं खोया खोया रहूँ ।

आ आलिंगन में बांध लूँ मैं,
तम्हे कभी न जाने दूँ मैं,
गेशु घने की छांव में , ये सारी  उम्र ही गुजर दू मै ,
तेरो अधरों की मुस्कान को मैं प्यार में बांध लू,
कभी जाने न दू मै।
कमल कोपल सी कमली नयन शुशोभित पे,
दैदिप्प्य संवार दू मै।
इस तन आवरण से जिससे तू मुझे रिझा रही हो ,
उधेड़ कर इनको तम्हे पा लूँ मैं,
इतना प्यार करूँ इतना प्यार करूं मैं,
कभी जाने न दू मैं।

तुझमे यूँ  डूबा-डूबा सा रहूँ मै ,
की मैं कौन हूँ , ये भी भूल जाऊं मैं,
और कभी देखूं  कभी अक्श कोई ,
तुमको ही पाऊँ मैं।
तेरी हर अदा को कविता में देखा करूँ ,
हिये में तस्वीर तेरी नित उकेरा करूँ मैं,
हर कला की हर साधना में साधा करूँ मैं,
आलिंगन में बांध लूँ,
कभी न जाने दूँ मैं।

रात दिन तम्हे लिखता रहूँ,
तुझमे डूबा डूबा कहीं खोया खोया रहूँ मैं।


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