poet shire

poetry blog.

Friday, July 22, 2011

यादों के साये में. (१)

क्यों जिन्दगी में पतझड़ है?
ग़मों की सरिता बहती कल कल है ,
क्यों वक्त हमारी खातिरदारी नही करता?
क्यों जिंदगी का सावन मिट गया है ?
आज बदरंग हो गई हर फिजा है ,
सुनहरी धुप भी क्यों ढक गई है ?
क्यों आया वो ग़मों का प्याला हमारे हाथ ?
क्यों छोड़ गए वो जो कल थे हमारे साथ?

No comments:

Post a Comment

ads